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ते दश॑ग्वाः प्रथ॒मा य॒ज्ञमू॑हिरे॒ ते नो॑ हिन्वन्तू॒षसो॒ व्यु॑ष्टिषु। उ॒षा न रा॒मीर॑रु॒णैरपो॑र्णुते म॒हो ज्योति॑षा शुच॒ता गोअ॑र्णसा॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

te daśagvāḥ prathamā yajñam ūhire te no hinvantūṣaso vyuṣṭiṣu | uṣā na rāmīr aruṇair aporṇute maho jyotiṣā śucatā goarṇasā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ते। दश॑ऽग्वाः। प्र॒थ॒माः। य॒ज्ञम्। ऊ॒हि॒रे॒। ते। नः॒। हि॒न्व॒न्तु॒। उ॒षसः॑। विऽउ॑ष्टिषु। उ॒षाः। न। रा॒मीः। अ॒रु॒णैः। अप॑। ऊ॒र्णु॒ते॒। म॒हः। ज्योति॑षा। शु॒च॒ता। गोऽअ॑र्णसा॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:34» मन्त्र:12 | अष्टक:2» अध्याय:7» वर्ग:21» मन्त्र:2 | मण्डल:2» अनुवाक:4» मन्त्र:12


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (दशग्वाः) दशों इन्द्रियों से सिद्धि को प्राप्त होते हैं वे (प्रथमाः) बहुत विस्तारयुक्त बुद्धिवाले मुख्य विद्वान् जन (यज्ञम्) यज्ञ को (ऊहिरे) प्राप्त होते हैं (ते) वे (उषसः) प्रभातकाल के (व्युष्टिषु) प्रतापों में (नः) हमलोगों को (हिन्वन्तु) बढ़ावें जो (अरुणैः) लाल वर्णों से (महः) बड़े (गोअर्णसा) जिसमें कि किरण और प्रकाश विद्यमान (शुचता) जो पवित्र वा पवित्रता है उस (ज्योतिषा) प्रकाश से (रामीः) आराम की देनेवाली रात्रियों को (उषाः) प्रभात समय के (न) समान (अप,ऊर्णुते) न ढाँपते अर्थात् प्रकट करते हैं (ते) वे हमारे शिक्षक हों ॥१२॥
भावार्थभाषाः - जो क्रियाकाण्ड में कुशल जितेन्द्रिय जन प्रभातकाल के समान अविन्द्यान्धकार की निवृत्ति करनेवाले मनुष्यों को विद्या और उत्तम शिक्षा से बढ़ाते हैं, वे सबको सत्कार करने योग्य हैं ॥१२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

ये दशग्वाः प्रथमा विद्वांसो यज्ञमूहिरे त उषसो व्युष्टिषु नोऽस्मान् हिन्वन्तु। येऽरुणैर्महो गोअर्णसा शुचता ज्योतिषा रामीरुषा नापोर्णुते तेऽस्माकं शिक्षकाः सन्तु ॥१२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ते) (दशग्वाः) ये दशभिरिन्द्रियैः सिद्धिं गच्छन्ति ते (प्रथमाः) पृथुबुद्धयः (यज्ञम्) (ऊहिरे) प्राप्नुवन्ति (ते) (नः) अस्मान् (हिन्वन्तु) वर्द्धयन्तु (उषसः) प्रभातस्य (व्युष्टिषु) प्रतापेषु (उषाः) प्रभातः (न) इव (रामीः) आरामप्रदा रात्रीः (अरुणैः) रक्तवर्णैः (अप) (ऊर्णुते) आच्छादयति (महः) महता (ज्योतिषा) प्रकाशेन (शुचता) पवित्रेण पवित्रकारकेण (गोअर्णसा) गावः किरणा अर्णो जलं चास्मिँस्तेन ॥१२॥
भावार्थभाषाः - ये क्रियाकाण्डकुशला जितेन्द्रिया उषर्वदविद्याऽन्धकारनिवारका मनुष्यान् विद्यासुशिक्षाभ्यां वर्द्धयन्ति ते सर्वैः सत्कर्त्तव्याः ॥१२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे क्रिया करण्यात कुशल, जितेन्द्रिय असतात, प्रभात वेळेप्रमाणे अविद्यांधकाराची निवृत्ती करणाऱ्या माणसांना विद्या व सुशिक्षणाने वृद्धिंगत करतात त्यांचा सर्वांनी सत्कार करावा. ॥ १२ ॥